Tuesday, March 13, 2012

मैं सपने में भी बस इक नाम हिन्दोस्तान लेता हूं





सियारी खाल की बदबू हवा से जान लेता हूं

सियासत वालों को मैं दूर से पहचान लेता हूँ


भुवन में हो कोई बाधा तो आए रोक ले मुझको

वो पूरा करके रहता हूं जो मन में ठान लेता हूं


मेरे गंगानगर में नहर है पंजाब से आती

इसी कारण मैं पीने से प्रथम जल छान लेता हूं


ये सब इक कर्ज़ अदाई है, न बेटा है, न भाई है

मगर तुम कह रहे हो तो चलो मैं मान लेता हूं


मैं अपने घर का चूल्हा अपने ईधन से जलाता हूं

न तो अनुदान मिलता है, न मैं ऐहसान लेता हूं


मेरा जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-मुल्क़ लासानी है सच मानो

मैं सपने में भी बस इक नाम हिन्दोस्तान लेता हूं


प्रिये तुम जा रही हो तो मेरे सब लाभ ले जाओ

मैं अपने सर पे 'अलबेला' सभी नुक़सान लेता हूं


हास्यकवि अलबेला खत्री दक्षिण गुजरात चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स -सूरत  के  अध्यक्ष से सम्मान स्वीकारते हुए

जय हिन्द !

1 comment:

अलबेला खत्री आपका अभिनन्दन करता है