Friday, February 24, 2012

सच मानो जब तक पीर का काग़ज़ न हो..........



रात न ढले तो कभी

भोर नहीं होती बन्धु
सांझ न ढले तो कभी तम नहीं होता है


लोहू तो निकाल सकता
तेरे पाँव में से
कांच से मगर घाव कम नहीं होता है


जीने की जो चाह है तो
मौत से भी नेह कर
डरते हैं वो ही जिनमें दम नहीं होता है


सच मानो जब तक
पीर का काग़ज़ न हो
कवि की कलम का जनम नहीं होता है

हास्यकवि अलबेला खत्री - सूरत


जय हिन्द !

1 comment:

अलबेला खत्री आपका अभिनन्दन करता है