Saturday, February 11, 2012

संवर्धन करने वाला ही संहारक हो गया



 जिस प्रकार

हवा
हाथों के इशारे नहीं समझती

आग
आँखों से डरा नहीं करती

पानी
आँचल में क़ैद नहीं हो सकता

अम्बर
किसी एक का हो नहीं सकता

वसुधा
अपनी ममता त्याग नहीं सकती
वो
सिर्फ़ देना जानती है, मांग नहीं सकती

उसी प्रकार
मनुष्य भी
यदि अपने स्वभाव पर अडिग रहता तो बेहतर था
परन्तु इसने निराश किया

अतः परिणाम बहुत ही मारक हो गया
संवर्धन करने वाला ही संहारक हो गया
 
हास्यकवि अलबेला खत्री आयोजित लाफ़्टर शो

जय हिन्द !

No comments:

Post a Comment

अलबेला खत्री आपका अभिनन्दन करता है