Friday, January 27, 2012

चलो चलें कहीं और, यहाँ पी नहीं पायेंगे




तेरी संगत
मेरी रंगत निखार देती है
पर तेरी मुहब्बत
अक्सर मुसीबत में डाल देती है

क्योंकि ज़माना
ढूंढता है बहाना क़त्ल करने का
हर तरफ़ धोखा
नहीं कोई मौका वस्ल करने का

अपनी हस्ती जुदा है
अपनी मस्ती जुदा है
अपनी बस्ती जुदा है

ये कोई और लोग हैं जो जीना नहीं जानते
ये सागर नहीं जानते हैं, मीना नहीं जानते
ये ऐसे मयफ़रोश हैं जो पीना नहीं जानते


सौदागरों के शहर में हम जी नहीं पाएंगे
ज़ख्मे-जाना किसी कदर सी नहीं पायेंगे
चलो चलें कहीं और, यहाँ पी नहीं पायेंगे


पहलू में थोड़ा सब्र-ओ-ईमान बाँध लो
सफर लम्बा है, थोड़ा सामान बाँध लो

ग़म जल पड़ेंगे
हम चल पड़ेंगे

चलते रहेंगे
चलते रहेंगे
चलते रहेंगे

सूरत में अमर शहीदों  के नाम एक  एक विराट कार्यक्रम में अलबेला खत्री
 
जय हिन्द !

2 comments:

  1. सौदागरों के शहर में हम जी नहीं पाएंगे
    ज़ख्मे-जाना किसी कदर सी नहीं पायेंगे
    चलो चलें कहीं और, यहाँ पी नहीं पायेंगे
    waah-waah...........lajabaab !

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अलबेला खत्री आपका अभिनन्दन करता है