Friday, January 27, 2012

चलो चलें कहीं और, यहाँ पी नहीं पायेंगे




तेरी संगत
मेरी रंगत निखार देती है
पर तेरी मुहब्बत
अक्सर मुसीबत में डाल देती है

क्योंकि ज़माना
ढूंढता है बहाना क़त्ल करने का
हर तरफ़ धोखा
नहीं कोई मौका वस्ल करने का

अपनी हस्ती जुदा है
अपनी मस्ती जुदा है
अपनी बस्ती जुदा है

ये कोई और लोग हैं जो जीना नहीं जानते
ये सागर नहीं जानते हैं, मीना नहीं जानते
ये ऐसे मयफ़रोश हैं जो पीना नहीं जानते


सौदागरों के शहर में हम जी नहीं पाएंगे
ज़ख्मे-जाना किसी कदर सी नहीं पायेंगे
चलो चलें कहीं और, यहाँ पी नहीं पायेंगे


पहलू में थोड़ा सब्र-ओ-ईमान बाँध लो
सफर लम्बा है, थोड़ा सामान बाँध लो

ग़म जल पड़ेंगे
हम चल पड़ेंगे

चलते रहेंगे
चलते रहेंगे
चलते रहेंगे

सूरत में अमर शहीदों  के नाम एक  एक विराट कार्यक्रम में अलबेला खत्री
 
जय हिन्द !

Thursday, January 26, 2012

वो आज उतरा है भीतर मेरी टोह लेने, मैं सहमा खड़ा हूँ फिर इम्तेहान देने


 
महक ये

उसी के मन की है

जो चली आ रही है

केश खोले


दहक ये

उसी बदन की है

जो दहका रही है

हौले हौले



महल मोहब्बत का आज सजा संवरा है

आग भड़कने का आज बहुत खतरा है


डर है कहीं आज

खुल न जाए राज़


क्योंकि मैं आज थोड़ा सुरूर में हूँ

उसी की मोहब्बत के गुरूर में हूँ


जो है मेरा अपना...........

सदा सदा से ..........


मेरा मुर्शिद

मेरा राखा

मेरा पीर

मेरा रब

मेरा मालिक

मेरा सेठ

मेरा बिग बोस


वो आज उतरा है भीतर मेरी टोह लेने

मैं सहमा खड़ा हूँ फिर इम्तेहान देने


जानते हुए कि फिर रह जाऊंगा पास होने से

आम फिर महरूम रह जाएगा ख़ास होने से


लेकिन मन लापरवाह है

क्योंकि वो शहनशाह है


लहर आएगी, तो मेहर कर देगा

मुझे भी अपने नूर से भर देगा


मैं मुन्तज़िर रहूँ ये काफ़ी है

मैं मुन्तज़िर रहूँ ये काफ़ी है

मैं मुन्तज़िर रहूँ ये काफ़ी है



सांपला ब्लोगर्स मीट में एकत्रित हुए ब्लोगर्स   मित्रों के साथ  फ़ुर्सत के क्षण


जय हिन्द !

Tuesday, January 24, 2012

लीडरों के फूले- फले गाल मेरे देश में.........




पूछते हैं आप तो

बताऊंगा ज़रूर बन्धु

आज़ादी के बाद जो है हाल मेरे देश में



वोटरों के पेट पीछे

पिचके चले हैं और

लीडरों के फूले- फले गाल मेरे देश में



नीला नीला गगन भी

लगता सियाह आज

धरा हुई शोणित से लाल मेरे देश में



गद्दारों की भीड़ बढती

ही चली जा रही है

खुद्दारों का पड़ा है अकाल मेरे देश में



मराठी सुपरहिट फ़िल्म "येऊ का घरात ?"  के हिन्दी संस्करण " चिट्ठी आई है"  के गीतों की रिकॉर्डिंग  के अवसर पर निर्माता -निर्देशक व अभिनेता  दादा कोंडके  और गीतकार  अलबेला खत्री

लाज बचाने के लिए आत्मघात कर रही हैं



 ( सूरत में घटी एक शर्मनाक घटना पर करुण काव्य )


पत्तियाँ
गुलाब की

कुछ यूँ  झर रही हैं

मानो  
 
कमसिन किशोरियां

अपनी लाज बचाने के लिए

आत्मघात कर रही हैं

-अलबेला खत्री 

गुजरात हिन्दी समाज अहमदाबाद के मंत्री राजकुमार भक्कड़ से सम्मान स्वीकारते हुए अलबेला खत्री

कादा स्वभाव से कादा नहीं था और कादा होने का उसका इरादा नहीं था




आंगन की

तुलसी के

मुलायम-मुलायम पातों पर

शयनित

शीतल-सौम्य ओस कणिकाओं को

सड़क किनारे

गलीज़ गड्ढे में सड़ रही

कळकळे कादे की

कसैली और कुरंगी जल-बून्दों पर

व्यंग्यात्मक हँसी हँसते देख

जब मेघ का

वाष्पोत्सर्जित मन भर आया

तो सखा सूरज ने उसे समझाया



भाया,

धीरज रख,

बिफर मत


क्योंकि इन ओस कणिकाओं को

अभी भान नहीं है

इस सचाई का ज्ञान नहीं है

कि कादा स्वभाव से कादा नहीं था

और कादा होने का

उसका इरादा नहीं था

प्रारब्ध की ब्रह्मलिपि

यदि कादे में छिपा जल

पढ़ गया होता

तो वह भी

किसी तुलसी के पातों पर

चढ़ गया होता



ख़ैर..

इस दृश्य को भी बदलना है,

सृष्टि का चक्र अभी चलना है

मेरी लावा सी लपलपाती कलाओं से

झरती आग

शोष लेगी शीघ्र ही -

तुलसी को भी,

कादे को भी

चूंकि दोनों में से

किसी के पास नहीं है अमरपट्टा

इसलिए

दोनों को ही

त्याजनी होगी धरती

और मेरे ताप के परों पर बैठ कर

जब दोनों ही

निर्वसन होकर पहुंचेंगे तेरे पास

तो तू स्वयं देख लेना-

कोई फ़र्क नहीं होगा दोनों में

बल्कि

तू पहचान भी न पाएगा


कौन ओस ?

कौन कादा ?

- अलबेला खत्री

अमरावती में लायंस क्लब की  रीजनल कांफ्रेंस  का उदघाटन करते हुए  प्रमुख वक्ता  अलबेला खत्री, साथ में  डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉ कासट तथा अन्य  पदाधिकारीगण


जय हिन्द !

वो सब मिला बिन मांगे, जो मुझे मांगना भी नहीं आता था



जिनसे

यह देह मिली

देह
को दुलार मिला

शक्ति मिली,

संवर्धन और विस्तार मिला


जीवन मिला

जीवन के पौधे को

नैतिकता का संचार मिला

श्रमशील

और

स्वाभिमानी रहने का संस्कार मिला


प्यार मिला

दुलार मिला

घर मिला

परिवार मिला

समाज मिला .........संसार मिला


वो सब मिला बिन मांगे,

जो मुझे मांगना भी नहीं आता था

मुझे तब चलना सिखाया

....जब रेंगना भी नहीं आता था


मैं नहीं भूला कुछ भी

न आपको

न आपकी सौगात को

न उस काली रात को

जब आप चिरनिद्रा में सो गए

जिस का रात-दिन स्मरण करते थे

उसी परमपिता के हो गये


छोड़ गये

तोड़ गये

सब बन्धन घर-परिवार के

देह के और दैहीय संसार के


काश! आज आप होते

तो मैं इतना तन्हा न होता ..............


सच है

पूर्ण सच है ....

इसमें कोई भी दो राय नहीं है

पिता का कोई पर्याय नहीं है

पिता का कोई पर्याय नहीं है


मैं नहीं जानता

पुनर्जन्म होगा या नहीं

हुआ भी तो

मानवदेह मिलेगा या नहीं


परन्तु

प्रार्थना नित यही करता हूँ

एक बार नहीं,

बार बार ऐसा हो, हर बार ऐसा हो

मैं रहूँ पुत्र और

आप ! हाँ .....आप ही मेरे पिता हो


आप ही आराध्य मेरे

आप ही हैं देवता

कृतज्ञता !

कृतज्ञता !

कृतज्ञता !


-अलबेला खत्री


हास्यकवि अलबेला खत्री  के कारगिल शहीदों को समर्पित ऑडियो एल्बम "तेरी जय हो वीर जवान" के आई.एन.एस. हमला में सम्पन्न  लोकार्पण समारोह में बाएं से दायें अभिनेत्री सुजाता मेहता, नेवी अधिकारी  कोमोडोर एफ. दुभाष, श्रीमती दुभाष,  विमोचनकर्ता  मुख्य अतिथि  श्रीमती वर्मा और कर्नल सुरेन्द्र  वर्मा (  शहीद कैप्टन  अमित वर्मा के माता पिता ), गीतकार-निर्माता अलबेला खत्री व  अभिनेत्री गुड्डी मारूति
जय हिन्द !

Monday, January 23, 2012

अन्धियारे के आँचल से सूरज निकलेगा





 सन्नाटे के सीने में तूफ़ान छुपा  है

 दर्दे-दिल में ख़ुशियों का सामान छुपा है


 अन्धियारे के आँचल से सूरज निकलेगा

काँटों के साये  में फिर से फूल खिलेगा

रात बहुत लम्बी है लेकिन कट ही जायेगी

फिर सुबह आएगी........

फिर सुबह आएगी........


अलबेला खत्री
दी ग्रेट इन्डियन लाफ्टर चैलेन्ज -२ के सेमी फायनल राउंड में परफ़ॉर्मेंस के बाद मस्ती के मूड में नाचते हुए बायें से दायें अली हसन,नवजोत सिद्धू,पेरिजाद कोला,स्मृति ईरानी, धार्शी, अलबेला खत्री, भगवंत मान, इरफ़ान मालिक और घुग्घी

 जय हिन्द !

Sunday, January 22, 2012

बचा खुचा तो बच जाये, मालिक से दुआ करो - घाव ये अब नासूर बन गया, इसकी दवा करो



 
हाल देश का मेरी नज़र से देखो तो दिखलाऊं 

फ़ुर्सत हो तो मैं भारत के समाचार  बतलाऊं


 संत हों या चंट,  दोनों  की है पौ बारा 

सीधा सादा आदमी, यहाँ मारा मारा 

 बच्चन और बोल-बच्चन का है जग दीवाना 

चकाचौंध  का  अन्धियाया  है आज  ज़माना  



मेहनत करके खाने वाले  टेक्स में डूबे  

कामचोर व धनलोलुप सेंसेक्स में  डूबे 

सुन्दर मुखड़े ब्लीच में डूबे, वेक्स में डूबे 

सौन्दर्य प्रेमी,  घर से बाहर सेक्स में डूबे 

लिखा के लाये 

डूब के मरना लकफ़ाइल में 

डूब रहे  सब  

अपनी अपनी इस्टाइल में 


परिवारों को  कलह ने मारा, फूट ने मारा  

सम्बन्धों को कडुवाहट  और टूट ने मारा 

मज़दूरों को  साहूकारों की  लूट ने मारा 

रामराज्य को लोकतन्त्र  के रूट ने मारा  


बचा खुचा तो बच जाये, मालिक से दुआ करो  

घाव ये अब नासूर बन गया, इसकी दवा करो  

-अलबेला खत्री 


हास्यकवि अलबेला खत्री  का नया सृजन - ऑडियो सी डी  "हे हनुमान बचालो"


जय हिन्द !

जिस्म को शुरुआत प्यारी लग रही है






आजकी यह रात प्यारी लग रही है

आपकी हर बात प्यारी लग रही है


चाँद उतरा है ज़मीं पर, आसमां में

तारों की बारात प्यारी लग रही है


अब नहीं कोई गिला-शिकवा किसी से

प्यार में कायनात प्यारी लग रही है


क्यों करे परवाह दिल अन्जाम की

जिस्म को शुरुआत प्यारी लग रही है


वस्ल है करमा की ऐसी खीचड़ी के

दाल प्यारा, भात प्यारी लग रही है


-अलबेला खत्री

मुंबई में महाराष्ट्र शासन के माननीय मंत्री द्वय कृपाशंकर सिंह व उल्हास पवार समेत  साहित्य अकादमी के  डॉ केशव फाल्के  का स्नेह  ग्रहण करते हुए उन्हें अभिवादन करते हुए अलबेला खत्री

जय हिन्द !

न कोई वाद करते हैं, न ही विवाद करते हैं, दीये बस रौशनी का जहाँ आबाद करते हैं





दीया

आरती का हो या अर्थी का


दोनों

अन्धेरा छाँटते हैं

उजाला बाँटते हैं


लेकिन विनम्रता देखिये दोनों की


तो कोई किसी पे हँसता है

ही कोई व्यंग्य कसता है

कोई वाद करते हैं, ही विवाद करते हैं

दीये बस रौशनी का जहाँ आबाद करते हैं



इनमें शायद हीरो बनने का कोई

झगड़ा नहीं है


इसीलिए दीयागीरी में TRP का

लफड़ा नहीं है


बस काम करते हैं अपना अपना

आखरी दम तक


खपा देते हैं ख़ुद को............

बे-गरज़

ये बेजान दीये


कभी

आरजू - - इनाम नहीं करते



जबकि हम जानदार

आलम फ़ाज़ल

इन्सान


बिना गरज़ के

कभी कोई भी काम नहीं करते


__________कदाचित इसीलिए



हमें बार बार मरने को

बार बार ज़िन्दा होना पड़ता है


छोटी छोटी दुनियावी बातों पर

बारहा शर्मिन्दा होना पड़ता है



मुझे भी भ्रम है कि मैं

अपने फ़न--हुनर से

उजाला बांटता हूँ


जबकि सच तो ये है कि

अपने वजूद के लिए

औरों को काटता हूँ



छि: शर्म आती है अपनी ही सोच पर

इन्सानियत को खा गया हूँ नोच कर


काश ! मैं भी दीया होता......

आरती का सही

अर्थी का ही सही.........................


- अलबेला खत्री

चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स की ओर से अलबेला खत्री को सम्मानित करते हुए  सूरत पीपल्स बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष  श्री बोडा वाला
 
जय हिन्द !

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयन्ती पर विनम्र शब्दांजलि


एक-एक चेहरा मायूस सा हताश सा है
एक-एक चेहरा उदास मेरे देश में

भाई आज भाई का शिकार खेले जा रहा है
बहू को जला रही है सास मेरे देश में

इतना सितम सह के भी घबराओ नहीं,
तोड़ो नहीं बन्धु यह आस मेरे देश में

टेढ़े-मेढ़े लोगों को जो सीधी राह ले आएगा,
पैदा होगा फिर से सुभाष मेरे देश में

-अलबेला खत्री  
पिथोरा कवि-सम्मेलन में मंच सञ्चालन करते हुए हास्यकवि  अलबेला खत्री




जय हिन्द !